भूतपूर्व निदेशक

निदेशक का संदेश

चावल अनुसंधान में संलग्न 300 से ज्यादा चावल वैज्ञानिकों के साथ 45 वित्त पोषित एवं लगभग 100 स्वैच्छिक केंद्र शामिल विश्व के विशालतम नेटवर्क के समन्वय एवं सिंचित चावल परितंत्र में अनुसंधान कार्य को आगे बढ़ाने के दायित्व वहन कर रहे इस संस्थान का निदेशक नियुक्त होना मेरे लिए सौभग्य का विषय है।    

चावल दो तिहाई से ज्यादा भारतीय लोगों का प्रमुख भोजन है तथा कुल खाद्यान्न में इसका 40% योगदान है, जिससे यह लोगों की खाद्य एवं जीविका सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। क्षेत्र की दृष्टि से देश के 43 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में चावल फसल की खेती की जाती है, जोकि विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्रफल है। पिछले साठ वर्षों में जीवन निर्वाह खेती से प्रौद्योगिकी चालित गहन खेती के रूप में एक आदर्श बदलाव देखा गया, जिसने देश को खाद्य की कमी से आत्मनिर्भर युग की ओर अग्रसर किया। एक वर्ष से जारी महामारी के प्रकोप की परिस्थितियों में भी 2019-20 में चावल का 118.87 मिलियन टन उत्पादन किया गया तथा 2020-21 के दौरान लगभग 120 मिलियन टन उत्पादन की आशा है। यह सब उच्च उपज युक्त किस्मों तथा संकरों की खेती एवं उन्नत फसल प्रबंधन कार्य अपनाने के कारण संभव हो पाया है। लोकार्पित कई किस्में प्रमुख पीडक तथा रोग प्रतिरोधी/सहिष्णु है।     यह सब अभासचासुप के माध्यम से एकाग्र प्रयासों, एवं अन्य अभिकरणों के साथ समन्वय के कारण संभव हुआ।

भारत ने पिछले दो दशकों से चावल निर्यात के क्षेत्र में निरंतर वृद्धि की है तथा 2011 से विश्व के सबसे बड़े चावल निर्यातक का वर्चस्व प्राप्त किया है तथा प्रतिवर्ष लगभग 16 मिलियन टन चावल का निर्यात करके 66000 करोड विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है। 

वर्ष 2020-21 के दौरान चावल वर्धक सभी परिस्थितियों/परितंत्र तथा राज्यों का प्रतिनिधित्व करते भाचाअनुसं के द्वारा वित्त पोषित 45 केंद्रों एवं 92 स्वैच्छिक केंद्रों के द्वारा सभी प्रमुख विषयों को शामिल करके 1842 परीक्षण किए गए। केंद्रीय तथा राज्य लोकार्पण समितियों (केंद्रीय-23, राज्य-38, क्षेत्र विस्तार-3) के द्वारा विभिन्न पारिस्थितिक हेतु 10 संकर तथा 45 किस्में शामिल कुल 64 किस्मों का लोकार्पण किया गया। राज्य लोकार्पित किस्मों में आंध्र प्रदेश हेतु 11, छत्तीसगढ़ हेतु 6, बिहार, तेंलगाना तथा ओडिशा हेतु 3-3, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा असम हेतु 2-2, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, सिक्किम तथा उत्तराखंड हेतु 1-1 किस्में अधिसूचित है। केंद्रीय किस्म लोकार्पण समिति के द्वारा भाकृअनुप-भाचाअनुसं की चार किस्मों अर्थात डीआरआर धान 53 (चिह्नक सहाय चयन से व्युत्पन्न, जिवाणु अंगमारी प्रतिरोधी), डीआरआर धान 54 (कई क्षेत्रों में शीर्ष रैकिंग के साथ एरोबिक किस्म), डीआरआर धान 55 (एरोबिक किस्म) तथा डीआरआर धान 56 (अगेती पौधरोपण परिस्थिति) किस्में लोकार्पित तथा अधिसूचित की गई। इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर 4166.11 क्विंटल प्रजनक बीज के उत्पादन के लक्ष्य की अपेक्षा 9217.33 क्विंटल उत्पादन किया गया।   

इन उपलब्धियों के बावजूद हमें 2030 तक चावल के 130 मिलियन टन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें प्रतिवर्ष 1.5-2 मिलियन टन अतिरिक्त उत्पादन अपेक्षित है। इसके साथ ही पोषण सुरक्षा हेतु जैव-संवर्धन के माध्यम से नए सीरे से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। पीड़क व रोग की बढ़ती घटनाओं तथा तेजी से बदलती जलवायु, घटते पानी, तथा मृदा एवं संसाधनों के कारण उत्पन्न अजैविक दबावों के संदर्भ में इसे प्राप्त करना है। चावल अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्रों में बहु-जैविक दबाव सहिष्णु किस्मों के प्रजनन हेतु नए जीन स्रोतों की पहचान व उपयोग, सस्य वैज्ञानिक महत्वपूर्ण बहु-लक्षणों युक्त किस्मों के प्रजनन के लिए नए तथा प्रजनक-अनुकूल आण्विक चिह्नक के विकास के माध्यम से चावल जीनोम अनुक्रम सूचना का लाभकर उपयोग, चावल में पोषक तत्व बढ़ाने हेतु जैव-संवर्धन, चावल गुणता बढ़ाने हेतु अध्ययन, जलवायु परिवर्तन संबंधी विषयों का समाधान, चावल जननद्रव्य का समन्वित मूल्यांकन व उपयोग, सूखा, लवणता, जलमग्नता सहिष्णु चावल किस्मों का प्रजनन, श्रम बचत प्रौद्योगिकियों का विकास व प्रदर्शन, तथा भावी अनुसंधान क्षेत्रों में जैसे चावल को सी3 से सी4 प्रकाशसंश्लेषक फसल में बदलना, चावल परितंत्र में जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सुधार, उपज बढ़ाने हेतु जीनॉमिक उपकरणों को शामिल करना चाहिए। इन चुनौतियों का सार्वजनिक व निजी भागीदारी मोड में राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्रों की साझेदारी से विज्ञान व प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के द्वारा सही परीप्रेक्ष्य में समाधान किया जा सकता है।   

संस्थान में वर्तमान में संचालित जैव-संवर्धन पर परिसंघ अनुसंधान मंच (सीआरपी-एबी), संकर प्रौद्योगिकी, कृषि जैव-विविधता, आण्विक प्रजनन तथा अनुसंधान को प्रोत्साहित करना एवं 48 अन्य बाह्तय वित्त पोषित परियोजनाएं उत्पादकता बढ़ाने के लिए अनुसंधान परिणामों को स्थिर रखने हेतु उपयुक्त मंच हैं। हाल ही में हमने हमारे आवेदनों हेतु छह सर्वाधिकारी प्राप्त किए, 2020-21 में चार चावल किस्में लोकार्पित की, छह जननद्रव्य भंडार पंजीकृत किए, दो आनुवंशिक भंडार व एक किस्म को व्यावसायिकृत किया तथा उच्च प्रभाव वाली प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 100 से ज्यादा वैज्ञानिक अनुसंधान पत्र प्रकाशित हुए।    

अनुसंधान के क्षेत्र में प्रगति के दौरान कई भावी लक्ष्य एवं बाधाएं भी प्रस्तुत हुई हैं, जिनका हमारे सतत एवं सराहनीय समर्थन प्रदान करने वाले भागीदार अभासचासुप के समर्थन से समन्वित ढंग से सही परीप्रक्ष्य में समाधान किए जाने की आवश्यकता है। भाकृअनुप-भाचाअनुसं ने परिदृष्टि 2050 दस्तावेज में परिकल्पित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु 10 सूत्री कार्यनीति तैयार की है। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर खाद्य व पोषण सुरक्षा प्राप्त करने हेतु एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना केंद्रों, तथा भाकृअनुप सहोदर संस्थानों का समर्थन व सहयोग अपेक्षित है। 

डॉ. आर एम सुंदरम

(निदेशक) 

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