हमारे बारे में

अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना की शुरुआत राजेन्द्रनगर, हैदराबाद स्थिति अपने मुख्यालय में 1965 में हुई। अ.भा.स.चा.सु.प. के पूर्व भारतीय चावल अनुसंधान प्रणाली कुछ अनुसंधान प्रतिष्ठानों एवं विश्वविद्यालयों में बंटी हुई थी। भारत के प्रत्येक प्रमुख चावल वर्धक क्षेत्रों में पहली अर्ध बौनी चावल किस्म टीएन(1) के परीक्षण के संबंध में भिन्न-भिन्न राय के चलते एक पूर्णकालिक समन्वयक के साथ पहले राष्ट्रीय समन्वित चावल सुधार परियोजना की स्थापना हुई। अ.भा.स.चा.सु.प. के कार्य प्रारंभ में एक आंचलिक समन्वयक के दायित्व में 7 अंचलों में 22 संजाल केंद्रों में हुआ। भारत के प्रमुख चावल वर्धक राज्यों में 12 क्षेत्रीय केंद्रों अर्थात – पालमपुर, पंतनगर, कपूरथला, चिसुराह, संबलपुर, रायपुर, मार्टेरु, कर्जत, नवागाम, मांड्या, अडुथुरै तथा पट्टांबी की स्थापना हुई। ऊपरि शिलांग, कलिम्पाँग तथा इम्फाल की परीक्षण केंद्रों के रूप में पहचान की गई।       

पांचवी पंचवर्षीय योजना (1974-79) में चावल की प्रगति एवं भावी चुनौतियों पर विचार करते हुए, भाकृअनुप ने 23 केंद्र जोड़कर इसके केंद्रों की संख्या 45 कर दी। प्रौद्योगिकी विकास एवं मूल्यांकन के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अप्रैल, 1983 में अ.भा.स.अनु.प. का चावल अनुसंधान निदेशालय के रूप में उन्नयन किया गया तथा भारत में चावल उत्पादन को स्थिर एवं मजबूती प्रदान करने के लिए सिंचित चावल पर अनुसंधान करने का अतिरिक्त कार्यभार (अधिदेश) सौंपा गया। छटवीं योजना अवधि (1980-85) के दौरान 8 अतिरिक्त उप-केंद्र स्वीकृत किए गए, जिससे केंद्रों की कुल संख्या बढ़कर 53 हो गई। विषय विशेष संबंधी 8 केंद्रों को मिलाकर केंद्रों की कुल संख्या 61 थी। सातवीं योजना अवधि (1985-86 से 1989-90) के दौरान केंद्रों की सख्या कम करके 50 (18 मुख्य तथा 32 उप केंद्र) कर दी गई। आठवीं योजना अवधि (1992-97) के दौरान 51 स्वीकृत केंद्र थे, जिनमें से 6 केंद्र वापस ले लिए गए तथा नौवीं योजना अवधि (1997-2002) के दौरान करनाल केंद्र का कौल के साथ विलय कर दिया गया। दसवीं योजना अवधि (2002-2007) के दौरान कानपुर तथा नगिना केंद्रों को स्वीकृति प्रदान करने के कारण केंद्रों की कुल संख्या 46 हो गई तथा ग्याहरवी योजना अवधि (2007-2012) के दौरान पश्चिमी भारत के दक्षिणी गुजरात में नवसारी केंद्र को जोड़ने के परिणास्वरूप केंद्रों की कुल संख्या 47 हो गई। बाहरवीं योजना अवधि (2012-2017) के दौरान दो केंद्र अर्थात करीमगंज तथा साबौर वापस ले लिए गए। अतः वर्तमान में 45 वित्त पोषित केंद्र हैं तथा 100 से ज्यादा स्वैच्छिक केंद्र हैं जहां प्रत्येक विषय क्षेत्र में स्वैच्छिक आधार पर परीक्षण किए जाते हैं।          

स्वर्ण जयंती वर्ष के दौरान 15 दिसंबर, 2014 से चावल अनुसंधान निदेशालय का  राष्ट्रीय संस्थान के रूप में भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान के रूप में उन्नयन किया गया।

संस्थान की गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य भाकृअनुप के “किसान प्रथम” प्रयोजन को ध्यान में रखकर भाचाअनुसं की परिदृष्टि, मिशन तथा अधिदेश को पूरा करना है।

हमारा लक्ष्य

खाद्य एवं पोषण तथा जीविका सुरक्षा सुनिश्चित करके भारतीय चावल-किसानों एवं उपभोक्ताओं की वर्तमान व भावी पीढ़ियों का कल्याण।

हमारा मिशन

पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, चावल की उत्पादकता, संसाधन एवं आगत उपयोग दक्षता तथा चावल की खेती से लाभप्रदता को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास।

हमारे अधिदेश

  • सिंचित परितंत्र के अंतर्गत चावल उत्पादकता बढ़ाने हेतु मूलभूत तथा नीतिपरक अनुसंधान।
  • विभिन्न परितंत्रों हेतु आवश्यक स्थान विशिष्ट किस्मों एवं प्रौद्योगिकियों के विकासार्थ बहु-स्थानीक परीक्षणों का समन्वय।
  • प्रौद्योगिकियों का प्रसार, क्षमता निर्माण एवं संपर्क स्थापना।

 

20, मई, 2016 की भारत सरकार की अधिसूचना

SEARCH